महिलाएं क्‍यूं लेती हैं अपने सिर पर घूँघट?

हमारे भारतीय समाज में महिलाओं को हमेशा समाजिक परंपराओं को निभाते और मानते हुए देखा गया है, जैसे कि वे हमेशा ही पारंपरिक कपड़े, और गहने, पहनती हैं, माथे पर बिंदी लगाती हैं और सर पर घूंघट लेती हैं। समाज में महिलाओं दृारा सिर को ढकने की प्रथा ने हमेशा ही हमारे अंदर जिज्ञासा बढाई है । सिर पर घूँघट डालना अपने से बड़ों के सम्मान के रूप में देखा गया है, इसलिए महिलाएं अपनों से बड़ों के सामने सदैव घूँघट करती हैं। शहरों में यह कुछ कम देखने को मिलता है मगर गांवों में आज भी महिलाएं अपने सर और चेहरा पुरुषों से ढांक के रखती हैं।

महिलाएं घूँघट क्यों लेती हैं ? क्‍या कहता है हमारे धर्म ग्रंथ इस विषय पे?

आपको यह जान के आश्चर्य होगा कि हमारे धर्म ग्रंथों में महिलाओं को घूँघट में रहने का, कही भी उल्‍लेख नहीं है। यहां तक कि पूजा के समय भी सर पर घूँघट रखना आवश्यक नहीं है। सुरक्षा के कारण कुछ धर्मो में घूँघट रखना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि वे मानते  है कि अगर महिलाएं खुद को घूँघट में रखेंगी तो वे अन्‍य पुरुषों से सुरक्षित रहेंगी। महिलाएं केवल अपने पति या पिता के सामने घूँघट हटा सकती हैं।
 

मुसलमानों का आक्रमण 

महिलाओं को घूँघट में रखने का रिवाज मुसलमानों के आक्रमण के बाद से हुआ है। भारत में राजपूत शासन के समय  महिलाओं को आक्रमणकारियों कि क्रूरता से बचाने के लिए उन्हें घूँघट में रखा जाता था। इसका सबसे बड़ा उदहारण हैं चित्तौड़ की रानी पद्मिनी, जिनकी सुन्दरता को देख कर अला-उद-दीन खिलजी ने उन्हें पाने के लिए चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया था। लेकिन रानी पद्मिनी ने जौहर का प्रदर्शन किया और शत्रु के हाथ से बचने के लिए खुद आग में कूद प्राण त्याग दिए थे । तब से भारत में महिलाओं को घूँघट में रखने का रिवाज शुरू हो गया। घूँघट का अस्तित्व मध्यकालीन के बाद से आया है, उस समय  इसकी आवश्कता थी लेकिन समय के साथ देश व समाज में बढ़ते अश्लीलता को देख घूँघट का रिवाज़ चालु रहा | 

वर्तमान स्थिति

क्यूँकी घूँघट मर्यादा और लाज का प्रतीक है सदियों से स्त्रियाँ इसका पालन करती रही है | किन्तु आज कल स्त्रियाँ इसे अपने ऊपर थोपा गया एक बोझ मानने लगे है | किसी भी रिवाज या रिश्ता ही क्यों न हो, यदि कोई उसे बोझ समझने लगे तो उस रिवाज या रिश्ते को निभा पाना कठीन हो जाता है | समय के साथ बदलाव लाना आवश्यक है किन्तु उसके लिए सहज होना भी अनिवार्य है | यदि स्त्रियाँ, अपनी लाज और मर्यादा में रहे तो घूँघट हटाना कोई बड़ी बात नहीं होगी | मेरी दृष्टी में घूँघट रखने से स्त्रियों में शालीनता और लज्जा स्वाभाविक ही आ जाती है | अब ये इन पर निर्भर है की वे घूँघट को लाज का प्रतीक समझे या बोझ ! 

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